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अपना खून

रमेश अपनी पत्नी नीरा पर दबाव डाल रहे थे कि वह गर्भ में पल रहे भ्रूण का लिंग परीक्षण करवा ले। अगर लड़की है तो गर्भपात करा दे। लेकिन नीरा अपनी जिद पर अड़ी हुई थी कि वह लिंग परीक्षण नहीं कराएगी। जो भी हो वह अपनी औलाद को जन्म देगी। 


रमेश ने कहा, "अगर बेटी हुई तो मैं यह घर छोड़ कर चला जाऊँगा, फिर तुम अकेली ही अपनी बेटी की परवरिश करती रहना।" 

कुछ भी हो मैं लिंग परीक्षण नहीं करवाऊँगी। आखिर प्रसव का समय नजदीक आ गया। नीरा को अस्पताल में भर्ती कराया गया वहाँ उसने एक सुंदर सी बेटी को जन्म दिया। बेटी का सुनते ही रमेश अस्पताल से चले गए। अस्पताल में नीरा और उसकी माँ अकेली रह गई तीन दिन बाद नीरा को अस्पताल से छुट्टी मिली। 

रमेश घर पर ही थे। वे नीरा से मिलने एक बार अस्पताल नहीं गए थे। उन्होंने नीरा से कहा कि मैं बेटी के रहते हुए इस घर में नहीं रह सकता। नीरा ने अपने पति को बहुत समझाने का बहुत प्रयास किया कि बेटी कहाँ जाएगी, वह उसका अपना खून है?? लेकिन रमेश किसी भी तरीके से राजी नहीं हुआ। उल्टा नीरा से ही कहने लगा, "बेटी को चुनो या मुझे!" आखिर नीरा ने एक फैसला लिया और अपनी बेटी को अपनी माँ के घर पहुँचा दिया। माँ के घर में नीरा की बेटी की परवरिश होने लगी। नीरा की बेटी का नाम रागिनी रखा गया। रागिनी अपनी मामी की देखरेख में पलने लगी। मामी उसको बहुत प्यार करती अपनी बेटी की तरह हर जरूरत का ख्याल रखती। उसकी पढ़ाई-लिखाई का पूरा ध्यान रखा गया। रागिनी बड़ी होती गई और अच्छे नम्बरों से पास होती गई। 

उसकी मेहनत और मामा-मामी की परवरिश रंग लाई। रागिनी शहर के बड़े अस्पताल में डॉक्टर बन गई।  

दो साल के अंदर ही रागिनी ने शहर में अच्छी सी जगह पर एक बड़ा सा प्लाॅट खरीदा और उसे एक भव्य कोठी का रूप दिया। कोठी पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखवाया "रमेश-नीरा अपार्टमेंट"।

कोठी के उद्घाटन समारोह में माता-पिता, मामा-मामी, सभी रिश्तेदार एवं शहर के प्रतिष्ठित लोगों को बुलाया गया।

रागिनी ने हर मिलने-जुलने वाले से बड़ी गर्मजोशी के साथ अपने माता-पिता का परिचय कराया किन्तु मामा-मामी को पूर्णतया नजरंदाज कर दिया। किसी से कोई परिचय नहीं कराया। वह उनके अहसासों को एकदम भूल गई।

मामा-मामी को यह बात बहुत बुरी लगी। उन्हें पैसे का कोई लालच नहीं था। वे रागिनी की तरक्की से बहुत खुश थे किन्तु रागिनी से सम्मान की अपेक्षा रखते थे जो उससे नहीं मिला।

सच ही कहा है घुटने पेट की ओर मुड़ते हैं। 
"अपना खून ही अपना होता है"

स्वरचित-सरिता श्रीवास्तव "श्री"
धौलपुर (राजस्थान)




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2 Comments

kashish

09-May-2024 02:18 PM

Amazing

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Sarita Shrivastava "Shri"

08-May-2024 11:47 PM

👌👌

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